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e book : Khakhi Gangwar @ 199.00
Meet Shekhar Pandey, an unwavering police officer determined to bring down Inspector Bhaiya and his corrupt Khaki Company within the Mumbai Police. Assigned to the Anti-Corruption Bureau, Shekhar faces a dangerous conspiracy that threatens his life.
As he unravels a web of corruption, corporate warfare, and underworld involvement, Shekhar's unwavering spirit will be put to the ultimate test.
Can he defeat Bhaiya and cleanse the Mumbai Police of deep-rooted corruption? Find out in "Khaki Gangwar."
VIVEK AGRAWAL, a journalist with 3 decades of vast experience in the field of crime, defense, legal & terrorism in all the dimensions of media. Since 1985, he actively started writing as a freelancer for the local, state & national newspapers and earned good name in the united Madhya Pradesh.
His career in the mainstream newspapers started in 1992 with Hindi tabloid ‘Hamara Mahanagar’ at Mumbai. In 1993, joined Hindi national newspaper ‘Jansatta’ as a crime reporter. He broke many big time stories in both the newspapers.
His broadcast media journalism days started with India’s First Views Channel ‘Janmat’ (Live India) as Bureau Head, Maharashtra-Goa. He was part of the team of channel ‘Mi Mrathi’. Then joined ‘India TV’ as an investigative journalist.
Vivek Agrawal joined as State Head with ‘News Express’. He cracked many stories of Mumbai Mafia, Terrorism, Financial Crimes and Homeland Security all these days.
He is now focusing on writing and documentary projects, consulting print and electronic media houses to establish & run news businesses with right directions and high esteem.
He is offering his services as a news broadcast channel / newspaper / magazine setup professional to news assessment editor to various new establishments across the nation.
26 books on true crime and other serious subjects written by Vivek. He is the country’s first and only researcher-true crime writer in Hindi language.
His books ‘Mumbhai‘ and ‘Mumbhai Returns‘ created quite a stir in the publishing industry and content field. The book ‘Mumbhai’ won the Maharashtra State Hindi Sahitya Akademi Award 2018 in Journalism Catagory. In the same year ‘Mumbhai’ stood #1 in the non-fiction category in the Jagran-Nielsen survey.
The novel Dattatraya Lodge stood 2nd in the Maharashtra Sahitya Academy, Jainendra Kumar Award 2021-22 in the Novel category.
His one of the bestselling book Bombay Bar translated into Punjabi.
He was Chief Content Coordinator for Documentary Money Mafia Season 3 on Discovery Plus.
He is into creative writing for the Films, TV Shows and Web Series. Scripted 2 films, many short films, TV Shows.
Many Film, Web Series, TV+, TV Shows and Podcast projects are underway based on his books or concepts. Not only Crime, Mafia, Terrorism, Mysteries, Social Crimes, Economic Crimes but Social & Entertaining subjects are also procured by studios / production houses.
Unique and startling concepts and stories for the entertainment shows are his strength.
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ये छोटे-छोटे व्यंग्य यक्ष-युधिष्ठिर संवाद रूप में जब सामने आते हैं, तो हर उस बात पर व्यंग्य करते चलते हैं, जो लेखक समाज में देखता है। एक - दो पन्नों के लेख में रचना तत्व तो व्यंग्य विधान का है लेकिन प्राचीन आख्यानक के जरिए प्राचीन और अर्वाचीन की तुलना करते जाने से अधिक पैनापन आया है। वक्त की सलीब पर लटके यक्ष और युधिष्ठिर जैसे पात्र जब प्रश्न एवं उत्तर उपस्थित करते हैं, तो उनमें यथार्थ के अनगिन शूल मन में धंसते जाते हैं। ये व्यंग्य रिपोर्ताज श्रेणी का लेखन है, जो इन दिनों कम ही देखने में आता है। विवेक अग्रवाल चूंकि एक पत्रकार हैं, वे सामाजिक-राष्ट्रीय विषयों पर पैनी निगाह रखते हैं, जिसके चलते इन पर तंज करने से भी नहीं चूकते हैं।
दिल्ली की एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास, जो स्पेशल सेल और आतंकवादियों के बीच चूहे-बिल्ली के खेल का रोमांचक नजारा पेश करता है।
आतंकवादियों के दिल्ली दहलाने की योजना एक कोड शीट में छुपी थी, जिसे डिकोड किया स्पेशल के जांबाज डीसीपी प्रताप सिंह और उनकी टीम ने। दिमाग चकरा देने वाला उपन्यास जांच टीम को दिल्ली से बैंकॉक तक दौड़ाता है।
हर पल नए रहस्योद्घाटन उपन्यास को नवीनता देते हैं।
A novel based on a true event of Delhi police and act of terrorism. A mindboggling plot of a terror act, how Special Cell of Delhi Police solves it.
At the end of the drama, the revelation shocks all the investigative team. Cracking the conspiracy and decoded the code sheet will give a great read to the readers.
आर्केस्ट्रा डांसर की दुनिया भी निराली है। एक तरफ जहां बेड़िया समुदाय की लड़कियां पारंपरिक रूप से इन ऑर्केस्ट्रा में नाचती मिलती हैं, तो गर्ल चाइल्ड ट्रैफकिंग की शिकार लड़कियां भी आर्केस्ट्रा डांसर बनती है, वहीं कुछ लड़कियां बाखुशी इस पेशे में आती है। जरूरी नहीं कि वे सब वेश्यावृत्ति करें। उत्तेजित भीड़ को अपने करीब तक नहीं फटकने देती।
बिहार राज्य में ही 2,000 से अधिक आर्केस्ट्रा पार्टी फुल टाइम लड़कियों के नाच-गाने पर ही चलती हैं। कोई गरीबी की वजह से, कोई आपातकालीन जरूरतों के कारण, कोई शौकिया तौर पर, कोई सिर्फ कमाई करने के लिए, तो कोई फिल्मों में एक रोल मिलने की चाहत में आर्केस्ट्रा पार्टियों के संचालकों की गुलाम बन मंचों पर नाचती हैं। एक तरफ आर्केस्ट्रा लोगों को रोजगार देते हैं, मनोरंजन करते हैं, तो दूसरी तरफ लड़कियों के लिए सुनहले पिंजरों में तब्दील हो जाते हैं।
वो एक फोर्जर है। मास्टर फोर्जर। देश-विदेश का ऐसा कोई दस्तावेज या पासपोर्ट नहीं, जिसकी नकल अब्बास नहीं कर सकता।
अब्बास के क्लाईंट भी छोटे-मोटे नहीं हैं। देश के नामी-गिरामी अंडरवर्ल्ड डॉन, चीटर, कार्पोरेट लीडर्स, क्रिमिनल्स, दबंग, बाहुबली, भ्रष्ट नेता-अफसर... हर वो शख्श, जिसे कानून की निगाहों से, कानून के लंबे हाथों से, बच कर इंसानों के जंगल में गुम हो जाना है।
अब्बास का काम बखूबी चल रहा है। बिना किसी हंगामे और शोर-शराबे के चल रहे काम में एक दिन ऐसी अड़चन आई कि अब्बास की जिंदगी ही खतरे में पड़ गई। जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में अब्बास को वही सब करना पड़ा, जो उसके क्लाईंट्स करते आए हैं।
अब्बास का किरदार मुंबई अंडरवर्ल्ड में मौजूद रहा है, जिसे हूबहू पेश किया है लेकिन कथानक को रोचक बनाने के लिए कुछ लेखकीय छूट ली हैं।
हजारों किलोमीटर के हाईवे और सड़कों पर हर साल सैकड़ों हत्याएं होती है। हजारों करोड़ का माल लूटा जाता है।
हाईवे पर सक्रिय माफिया की इन खूनी और दरिंदगी से भरी हरकतों पर कभी हंगामा नहीं होता। कारण बहुत डरावना है।
हाईवे अपराधों में दरअसल किसी अमीर की हत्या नहीं होती, न उससे हफ्तावसूली होती है। ये तो ट्रक ड्राइवर और क्लीनर हैं, जिन्हें हाईवे माफिया मार गिराते हैं।
पेट्रोल, डीजल, घासलेट, नेप्था चोरी, तस्करी से मिलावट तक, दवा-रसायनों-डाई की चोरी से मिलावट तक, लोहे के सरियों से कॉपर ड्रमों की चोरी तक, मोबाइल फोन, सिगरेट, तंबाकू, कपड़ों, प्लास्टिक दानों से भरे ट्रकों – कंटेनरों की लूटपाट तक, न जाने क्या-क्या हरकत नहीं करता सड़कों पर सक्रिय हाईवे माफिया।
खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल और साथी राकेश दानी ने इस किताब में इसकी परत दर परत हर पोल खोली है।
माफिया सिरीज की छठी किताब, जिसमें अंडरवर्ल्ड और फिल्म जगत के आंतरिक रहस्यों का पर्दाफाश है।
मुंबई फिल्मोद्योग की एक सेक्सी अभिनेत्री मुंबई अंडरवर्ल्ड के बेताज बादशाह दानिश की अंकशायिनी कैसे और क्यों बनी? इस अदाकारा का ही जीजा अदीब कैसे और क्यों बन गया डॉन दानिश के लिए फिल्म जगत की अंदरूनी सूचनाएं देने वाला इनसाईडर? फिल्मी दुनिया और अंडरवर्ल्ड के बीच ऐसा चोली-दामन का गठबंधन है कि छूटे नहीं छूटता।
पुलिस वाले भी फिल्मी दुनिया का दोहन अंडवर्ल्ड के रिश्तों और उससे बचाने के नाम पर करते हैं।
ये तमाम नग्न सत्य का प्रकटन करता विवेक अग्रवाल का सच्चे किरदारों को केंद्र में रख कर लिया उपन्यास आपको हर पल चौंकाएगा।
इस पुस्तक के लेखक डॉ. राजेंद्र संजय अपने दिल की बात बताते हुए कहते हैः- “कवि की पहचान उसकी कविता है। मेरी कविताओं को एक बुज़ुर्ग शायर ने सुना। सुनकर वह बहुत प्रभावित हुए और सलाह दी कि मैं अपने संस्कृत बहुल शब्दों पर उर्दू की चाशनी चढ़ाऊँ। यह मुझे बहुत दूर तक ले जाएगी। काफी उधेड़-बुन के बाद मुझे अहसास हुआ कि बुज़ुर्ग का कहना बिल्कुल सही था।
मुश्किल में जो काम आता है उससे दिल का रिश्ता जुड़ जाता है। दरअस्ल, ये रिश्ते इंसानी ज़िंदगी में वह सीढ़ी हैं जिनके सहारे इंसान किसी भी ऊँचाई को छू सकता है।यह रिश्ता ही ख्वाबों को जन्म देता है, उनमें उड़ान भरता है, यह इंसान को कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है। इंसान इसी की बदौलत देवत्व को भी हासिल करता है। रिश्ते हैं तो सबकुछ है वरना कुछ भी नहीं है।
वृक्ष हमारे जीवन का अविभाज्य अंग हैं। वृक्षों के बिना जंगल और जंगल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जंगल हमारे पर्यावरण को परिष्कृत, सुरक्षित और संतुलित रखते हुए हमारे जीवन को रोगमुक्त तथा दीर्घायु बनाने की क्षमता रखते हैं। परंतु इस सत्य को दरकिनार कर जंगलों का कटना अबाध रूप से जारी है। इसका विपरीत प्रभाव न केवल पर्यावरण पर पड़ रहा है, बल्कि जीवों का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ गया है।
लोगों में पर्यावपण के प्रति जागृति भरने के लिए ‘वृक्षम् शरणम् गच्छामि’, ‘रहिमन पानी राखिए’, ‘ये आबादी कितनी बर्बादी’, ‘प्राणवायुः शत-शत प्रणाम’, ‘स्वच्छता देवालय है’ तथा ‘ध्वनि प्रदूषण है खरदूषण’ की रचना हुई। लोक नाट्यों को संक्षिप्त संस्करण के रूप में लेखक ने गायन व वाचन कर आकाशवाणी मुंबई ने धारावाहिक रूप में प्रसारित करके लोकहित में एक महत उद्देश्य की पूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुंबई के डांस बारों पर एक किताब लिखने चला तो ‘बांबे बार – चिटके तो फटके’ तैयार हो गई। उसके बाद काम किया, तो ‘बारबंदी – बरबाद बारों की बारात’ भी तैयार हो गई। उसके बावजूद इतना मसाला बचा रह गया कि एक और किताब तैयार हो जाए, लिहाजा बारबंदगी ने आकार ले लिया।
मुंबई के डांस बार पूरी दुनिया के कैनवस पर सतरंगी और बदरंगी सपनों का संसार हर रोज रचता है। इसमें जो झिलमिलाते सितारे हैं, वह पीछे से दर्द के तारों से बंधा है।
महाराष्ट्र सरकार भले ही कहे कि राज्य में बारबंदी है, सच तो यह है कि हर जगह ‘बारबंदगी’ जारी है। रिश्वत और भ्रष्टाचार के जरिए इनकी रंगीनियां सारी रात गुलजार रहती हैं।
बारबंदी किताब में जहां बारों पर ताला जड़ने और उसके संघर्ष की दास्तान ऊभर कर सामने आई, वहीं बारबंदगी में डांस बारों के ऐसे विषयों पर चर्चा की है, जो रहस्य की श्रेणी में आते हैं।
E BOOK-Achoot Kutta @ 199.00
भारत ही नहीं, पूरा विश्व अजब-गजब किस्म की परंपराओं और रीतियों से भरा है। उनके पीछे वैसे ही अजब-गजब तर्क भी पेश किए जाते हैं।
अजब दुनिया है, जितनी रंगीन है यहां जिंदगी, उतने ही काले रंग हैं यहां जीवन में। कुछ बुरे रिवाज समाज में हैं, जो बनाते हैं इंसान को हैवान। ऐसा सिर्फ भारत में नहीं हो रहा। सारी दुनिया कुरीतियों से शापित हो चली है।
इन अभिशाप ने न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों का भी जीवन जहर से भर दिया है। इनकी आग में आज भी कई जिंदगियां जल कर खाक हो रही हैं। आलम ये है कि हर जगह अपनी जरूरत के हिसाब से परंपराएं और रीति-रिवाज लोगों ने बना लिए।
लोगों को इन कुरीतियों के दरदरे पत्थरों के नीचे कुचलते और पीसते समाज की मुखालफत भी जरूरी है।
अछूत कुत्ता किताब में इन पर न केवल लेखक ने गहरी नजर डाली है बल्कि उनके खिलाफ कलम से आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की है।
आर्केस्ट्रा डांसर की दुनिया भी निराली है। एक तरफ जहां बेड़िया समुदाय की लड़कियां पारंपरिक रूप से इन ऑर्केस्ट्रा में नाचती मिलती हैं, तो गर्ल चाइल्ड ट्रैफकिंग की शिकार लड़कियां भी आर्केस्ट्रा डांसर बनती है, वहीं कुछ लड़कियां बाखुशी इस पेशे में आती है। जरूरी नहीं कि वे सब वेश्यावृत्ति करें। उत्तेजित भीड़ को अपने करीब तक नहीं फटकने देती।
बिहार राज्य में ही 2,000 से अधिक आर्केस्ट्रा पार्टी फुल टाइम लड़कियों के नाच-गाने पर ही चलती हैं। कोई गरीबी की वजह से, कोई आपातकालीन जरूरतों के कारण, कोई शौकिया तौर पर, कोई सिर्फ कमाई करने के लिए, तो कोई फिल्मों में एक रोल मिलने की चाहत में आर्केस्ट्रा पार्टियों के संचालकों की गुलाम बन मंचों पर नाचती हैं। एक तरफ आर्केस्ट्रा लोगों को रोजगार देते हैं, मनोरंजन करते हैं, तो दूसरी तरफ लड़कियों के लिए सुनहले पिंजरों में तब्दील हो जाते हैं।
Mumbhai
मुंबई माफिया पर कुछ लिखना, वह भी तब, जब बहुत कुछ कहा-सुना-लिखा-पढ़ा जा चुका हो, एक चुनौती है। ऐसी किताब पेश की है, जिसमें अंडरवर्ल्ड के ढेरों राज फाश हुए हैं।
ख़बरों की कुछ दिनों तक कीमत होती है लेकिन संग्रहणीय किताब सदियों तक कीमती बनी रहती है। देश का सबसे खतरनाक अंडरवर्ल्ड पूरे विश्व में जा पहुँचा है।
सुकुर नारायण बखिया, लल्लू जोगी, भाणा पटेल, हाजी मस्तान, करीम लाला तक तस्करी थी। वरदराजन मुदलियार ने कच्ची शराब, जुआखानों, चकलों, हफ़्तावसूली तक वो सब किया, जिससे गैंग के बीज पड़े। उसके बाद मन्या सुर्वे, आलमज़ेब, अमीरजादा, पापा गवली, बाबू रेशिम, दाऊद, गवली, सुभाष ठाकुर, बंटी, हेमंत, रवि, संतोष शेट्टी, वगैरह आए। ‘मुंभाई’ में कई अछूते विषय हैं। यह शोधपरक लेखन है। यह पुस्तक अंडरवर्ल्ड का जीवंत दस्तावेज़ है। ये ‘मुंभाई’ श्रृंखला की पहली पुस्तक है।
दिल्ली की एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास, जो स्पेशल सेल और आतंकवादियों के बीच चूहे-बिल्ली के खेल का रोमांचक नजारा पेश करता है।
आतंकवादियों के दिल्ली दहलाने की योजना एक कोड शीट में छुपी थी, जिसे डिकोड किया स्पेशल के जांबाज डीसीपी प्रताप सिंह और उनकी टीम ने।
दिमाग चकरा देने वाला उपन्यास जांच टीम को दिल्ली से बैंकॉक तक दौड़ाता है। हर पल नए रहस्योद्घाटन उपन्यास को नवीनता देते हैं।
A novel based on a true event of Delhi police and act of terrorism. A mindboggling plot of a terror act, how Special Cell of Delhi Police solves it.
At the end of the drama, the revelation shocks all the investigative team. Cracking the conspiracy and decoded the code sheet will give a great read to the readers.
मुंबई माफिया पर कुछ लिखना, वह भी तब, जब बहुत कुछ कहा-सुना-लिखा-पढ़ा जा चुका हो, एक चुनौती है। ऐसी किताब पेश की है, जिसमें अंडरवर्ल्ड के ढेरों राज फाश हुए हैं।
ख़बरों की कुछ दिनों तक कीमत होती है लेकिन संग्रहणीय किताब सदियों तक कीमती बनी रहती है। देश का सबसे खतरनाक अंडरवर्ल्ड पूरे विश्व में जा पहुँचा है।
सुकुर नारायण बखिया, लल्लू जोगी, भाणा पटेल, हाजी मस्तान, करीम लाला तक तस्करी थी। वरदराजन मुदलियार ने कच्ची शराब, जुआखानों, चकलों, हफ़्तावसूली तक वो सब किया, जिससे गैंग के बीज पड़े। उसके बाद मन्या सुर्वे, आलमज़ेब, अमीरजादा, पापा गवली, बाबू रेशिम, दाऊद, गवली, सुभाष ठाकुर, बंटी, हेमंत, रवि, संतोष शेट्टी, वगैरह आए। ‘मुंभाई’ में कई अछूते विषय हैं। यह शोधपरक लेखन है। यह पुस्तक अंडरवर्ल्ड का जीवंत दस्तावेज़ है। ये ‘मुंभाई’ श्रृंखला की दुसरी पुस्तक है।
पुस्तक में भोजपुरी फिल्मोग्राफी और इंडेक्स है, जो पहली फिल्म से 90 के दशक के अंतक की तमाम जानकारी समेटे है। ये काम जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। पत्र-पत्रिकाओं में इनकी सामग्री नहीं मिलती थी, ना कहीं रिकॉर्ड उपलब्ध थे। सरकारी, गैर-सरकारी और निजी संस्थाओं में भी नहीं थे। लेखक ने दर्जनों जगहों से सारे विवरण जुटा कर बरसों की गोर तपस्या से यह किताब तैयार की है। फिल्म-उद्योग पत्रिका “ट्रेड गाईड‘’ का भी गहन सहयोग मिला। पुस्तक के दोनों हिस्से यानी “इंडेक्स” और “फिल्मोग्राफी” संकलित हुए हैं।
भोजपुरी फिल्मों के साथ दूसरी बोलियों मगही, मैथिली, अवधी, ब्रजभाषा, बुंदेली, मालवी, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, कुमाऊनी, राजस्थानी तथा उनसे निकली नेपाली भाषा की पहली फिल्म से सन 1999 तक बनी फिल्मों का इंडेक्स भी इस पुस्तक में शामिल है।
यह शोध कार्य शिक्षा संस्थानों तथा शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
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Length 54".
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Length 51"
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Length 51"
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Length inner 54" outer 44"
e book : Khakhi Gangwar @ 199.00
Meet Shekhar Pandey, an unwavering police officer determined to bring down Inspector Bhaiya and his corrupt Khaki Company within the Mumbai Police. Assigned to the Anti-Corruption Bureau, Shekhar faces a dangerous conspiracy that threatens his life.
As he unravels a web of corruption, corporate warfare, and underworld involvement, Shekhar's unwavering spirit will be put to the ultimate test.
Can he defeat Bhaiya and cleanse the Mumbai Police of deep-rooted corruption? Find out in "Khaki Gangwar."